Role of Ayurveda for healthy life

जब हमारे शरीर के स्वास्थ्य को खराब करने में हमारे खाने की आदतों का सबसे बड़ा योगदान होता है। ऐसे में यदि हमारे खाने की आदतें ठीक नही है। तो हम चाहकर भी अपने आप को स्वस्थ नही रख सकते है। आयुर्वेद में इन आदतों को ठीक करने और शरीर को फिट रखने के लए सबसे ज्यादा दिनचर्या, रात्रिचर्या और ऋतुचर्या पर जोर दिया जाता है। ताकि हम जो भी भोजन करें वह समय अनुसार और ऋतु अनुसार ही हो। ताकि हम अपने आप को पूरी तरह से स्वस्थ रख सके। 

 

आयुर्वेद का दृढ़ विश्वास है कि अच्छे स्वास्थ्य की शुरुआत अच्छे भोजन के साथ ही होती है।  उचित भोजन मजबूत पाचन तंत्र की नीव होती है। आयुर्वेद का सिद्धांत  के अनुसार संतुलित भोजन, हमारी व्यक्तिगत और शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। पौष्टिक आहार जीवन शक्ति को बढ़ावा देने वाली दवा की तरह कार्य करता है। आयुर्वेद के महान आचार्य बागभट्ट जी ने कुछ नियम आज से हजारों वर्ष पूर्व प्रतिपादित किए थे। 

 

हेल्दी डाइट टिप्स में क्या है वागभट्ट जी के नियम - 

यदि आज की पीढी बागभट्ट जी के नियमों को अपने जीवन में लागू करते है। तो उससे आपकी पाचन क्रिया में मजबूती आती है और आपका एक स्वस्थ जीवन के मालिक बनते है। पौष्टिक भोजन से आपके शरीर के त्रिदौष (कफ दोष, पित्त दोष और वात दोष) संतुलित रहकर जीवन को सुचारु रुप से चलाते है और लंबी उम्र का वरदान भी प्राप्त कर लेते है। 

 

आयुर्वेद एक प्राचीन स्वास्थ्य पद्धति है जिसकी खोज लगभग 5,000 साल पहले भारत में हुई थी। "आयुर्वेद" दो संस्कृत शब्दों का एक संयोजन है जिसका अर्थ है जीवन (आयुर) और विज्ञान (वेद)। आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ "जीवन का विज्ञान" है। यदि आप स्वस्थ जीवन जीना चाहते है। तो आयुर्वेद आहार विज्ञान आपके लिए सबसे अच्छा विकल्प है। 

 

आयुर्वेद के प्रमुख हेल्दी टिप्स – 

1. भूख लगने पर ही खाएं -  जब आपका पिछला भोजन पूरी तरह से पच गया हो। 

2. शांत और आरामदायक जगह पर खाना खाएं। खाना खाते समय किसी भी प्रकार की चिंता न करें।  बैठकर ही खाना खाएं और खाते समय न टीवी, न किताब, न फोन, न लैपटॉप का उपयोग करें। 

3. सही मात्रा में खाएं - हम सभी अलग-अलग हैं, अलग-अलग ज़रूरतें और अलग-अलग पेट के आकार और अलग-अलग पाचन शाक्ति के साथ पैदा हुए है।  इसलिए अपने शरीर की सुनें और जरुरत के अनुसार ही भोजन करें। 

4. गर्म भोजन करें। 

5. गुणवत्तापूर्ण भोजन करें - सुनिश्चित करें कि आपका भोजन रसदार या थोड़ा तेलयुक्त हो क्योंकि इससे पाचन में आसानी होगी और पोषक तत्वों के अवशोषण में सुधार होगा। ऐसे खाद्य पदार्थों से बचें जो बहुत अधिक सूखे हों।

6. असंगत खाद्य पदार्थ एक साथ न खाएं - इससे पेट खराब हो सकता है। कुछ असंगत खाद्य पदार्थ फल और दूध, मछली और दूध आदि हैं।

7. भोजन करते समय पूरा ध्यान भोजन पर ही रखें । 

8. भोजन बहुत ज्यादा जल्दी और बहुत देऱी से न करें। क्योंकि ऐसा करने से आपकी पाचन क्रिया बाधित हो सकती है। 

9. नियमित समय पर खाएं - आयुर्वेद को और प्रकृति को चक्र को नियमितता पसंद है इसलिए आपको  इसका पालन करना चाहिए। 

 

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शारीरिक दोषों के लिए आयुर्वेदिक डाइडलाइन क्यों आवश्यक है ?

आयुर्वेदिक आहार गाइडलाइन देता है। जो शारीरिक दोषों के लिए उपयुक्त खाद्य पदार्थ खाने और उपभोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है। प्रत्येक दोष की ऊर्जा यह निर्धारित करने में मदद करती है। कि स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, बीमारियों को रोकने या प्रबंधित करने और समग्र स्वास्थ्य और कल्याण को बनाए रखने के लिए क्या खाना चाहिए। यह सब हमें आयुर्वेद से ही मिलता है। 


आयुर्वेद के अनुसार कैसी होने चाहिए हमारी भोजन की दिनचर्या - 

आयुर्वेद में भोजन को औषधि का दर्जा दिया गया है। अर्थात हम जो कुछ भी खाते और पीते है वह सब हमारे शरीर के लिए औषधि की तरह कार्य करते है।  आयुर्वेदिक चिकित्सा आहार, व्यायाम और जीवन शैली प्रथाओं की एक श्रृंखला के माध्यम से एक स्वस्थ मजबूत शरीर बनाने का एक प्रमुख जरीया है।  जिसमें नींद, संतुलित भोजन और दिमागी जीवन शामिल है। यदि आप आयुर्वेदिक आहार का पालन करते हैं, तो आप मुख्य रूप से अपने पेट से संबंधित सभी बीमारियों में नियंत्रण रख सकते हैं 

 

आयुर्वेदिक डाइटप्लान कैसे आपके शारीरिक दोषों पर नियंत्रण रखते है –

आयुर्वेद के मतानुसार आपके दोष ही आपकी सबसे प्रमुख ऊर्जा होते है। तीन अलग-अलग आयुर्वेदिक दोष पांच तत्वों से प्राप्त होते हैं: 

1. अंतरिक्ष

2. वायु

3. अग्नि

4. जल 

5. पृथ्वी

प्रत्येक तत्व अलग-अलग गुण या गुण प्रदान करता है। यदि इन दोषों का संतुलन खराब हो जाता है। तो आप बीमार पड़ जाते है। इसलिए इन दोषों को आप संतुलित रखना सबसे ज्यादा जरुरी होता है। 

आयुर्वेदिक आहार शुरू करने से पहले, आपको अपने प्रमुख दोष के बारे जानकारी होना बहुत आवश्यक है।  आयुर्वेदिक चिकित्सा के कई विशेषज्ञों का सुझाव है कि सबसे आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह लेना चाहिए। आशा आयुर्वेदा की डाइट एक्सपर्ट डॉ चंचल शर्मा कहती है कि शारीरिक दोष को संतुलित करने और आहार को अधिक प्रभावी बनाने के लिए खाद्य पदार्थों का चयन करना बहुत जरुरी होता है। 

 

आयुर्वेद में पौष्टिक भोजन के साथ-साथ पचाने पर भी जोर दिया जाता है – 

शरीर के तीन प्रमुख दोषों से ही स्वास्थ्य निर्भर होता है। आयुर्वेद के अनुसार भोजन में 6 प्रकार के रस होते है। इन रसों में 

1. मधुर (मीठा), 

2. नमकीन (लवण) 

3. खट्टा ( अम्ल) 

4. कटु ( कडवा ) 

5. तीखा 

6. कषैला (कषाय) शामिल होते है। 

 

इन सभी के उचित सेवन के आयुर्वेद मे नियम बने है। ताकि पोष्टिक भोजन आसानी से बच सके और मेटाबॉल्जि को मजबूत बना सके।